शनिवार, 8 नवंबर 2008

रोज मरने का इंतज़ार

उसे पहले अपने खून से सींचा,
फिर उसे अपने दूध से पाला,
आँसुओं को आंचल से पोंछ
उसे आंचल में छुपाया,
जब 'वह' खड़ा हुआ तो
एक नई नारी ने प्रवेश कर
पुरानी नारी को
वृद्धाश्रम की याद दिला दी।
कारण स्पष्ट था,
न तो उसे
फिर से जन्म लेना था,
न ही उसे- उस औरत के आंचल में
फिर से छुपना ही था,
न ही उसे- उसके किसी कष्ट का
होता था आभास,
बस करता था-
रोज मरने का इंतज़ार,
बस करता था-
रोज मरने का इंतज़ार।

by shambhu choudhary

4 टिप्‍पणियां:

  1. मर्म स्पर्शी रचना..
    [कल ही इस vishay par एक डॉक्युमेंटरी टीवी पर देखी थी.]

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  2. बहोत ही दर्द भरा ,वर्तमान में एसा हो रहा है आपके बात से सहमत हूँ पर उम्मीद है ना हो तो सही है ... बहोत ही दर्द उभरा है आपने आँखें भीग गई ..

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  3. एक कटु सत्य का सुंदर दिग्दर्शन आपने कराया इन पंक्तियों में.
    बहुत ही सटीक,मार्मिक...कविता है..

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