लेखक : बसंत लाल 'चमन' और महेश कुमार वर्मा, पटना, बिहार से
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हमारा देश भारत विविध संस्कृतियों का अनुपम राष्ट्र है। किसी भी देश की संस्कृति का उदय अकस्मात नहीं होता है अपितु परम्परागत मान्यताओं, आस्थाओं और जीवन-मूल्यों के आधार पर होता है। धर्म संस्कृति का आवश्यक अंग होने के कारण अनेक पवित्र कर्मों को उत्पन्न करता है। पर्व-त्यौहार संस्कृति के जिवंत प्रमाण है।
कोई त्यौहार पुरे देश में हर्षोल्लास पूर्वक मनाया जाता है तो कोई केवल सिमित स्थान में ही जनप्रिय होता है। जैसे - होली, दशहरा, दिवाली जहाँ व्यापक रूप से पुरे देश में मनाया जाता है तो वहीँ तमिलनाडू के पोंगल, पंजाब का बैशाखी, बिहार का छठ पर्व अपने-अपने क्षेत्र में लोकप्रिय है।
बिहार का छठ पर्व अपने-आप में एक अनूठा पर्व है। यह विशेषकर हिन्दुओं का पर्व है। इस पर्व में बच्चे-बुढे, महिला-पुरूष सबों का सामंजस्यपूर्ण बर्ताव सामाजिक एकता की कड़ी को नई जीवन देती है। महीनों पहले से ही ईसकी तैयारी शुरू हो जाती है।
छठ पर्व की शुरुआत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से होता है। चतुर्थी के दिन व्रती (महिला - पुरूष) पवित्रता पूर्वक स्नान करके कद्दू-भात का भोजन करते हैं। तत्पश्चात छठी मैया के व्रत का सिलसिला शुरू होता है। पंचमी के रोज 'खरना' की पूजा होती है जिसमें गुड़-खीर का भोग लगाया जाता है और अड़ोस-पड़ोस सबों को प्रसाद बाँटा जाता है। षष्ठी के रोज व्रती नदी किनारे डाला सजा के फल-फूल-नैवेद्य वगैरह के साथ संध्या काल में डूबते हुए भगवान भास्कर को अर्ध्य समर्पित करते हैं। पुनः सप्तमी के रोज उगते हुए भगवान् सूर्य को नदी किनारे अर्ध्य देते है। इस प्रकार छठ पर्व का कार्यक्रम सम्पन्न होता है।
त्यौहार देशव्यापी हो या क्षेत्रीय हो, ये हमारी जीवनचर्या को किन्हीं न किन्हीं रूपों में प्रभावित करती है। हमारी संस्कृति के आधारभूत तत्त्व धार्मिक सिद्धांत, सामाजिक परम्पराएं और जीवन-दृष्टिकोण की नींव पर खड़ी है। इस नींव को इस आधार को सतत सुदृढ़ता प्रदान कराए रहने में छठ पर्व का अतुलनीय योगदान सदा से रहा है। अपनों के बीच सबसे बड़ी चीज जो हमें छठ पर्व देती है वह है - परस्पर मेल-मिलाप की भावना का। सभी एक-दुसरे के कामों में हाथ बंटाने को तत्पर दीखते हैं। कहीं भी किसी से भी छोटी से छोटी भी गलती न हो जाए इसका बड़ा ख्याल रखते है। हमेशा एक-दुसरे को प्रोत्साहित करने को आतुर रहते हैं।
इतने सारे सदगुणों-सद्व्यव्हारों-सदाचरणोँ जैसी भावनाओं का विकास ख़ुद-ब-ख़ुद छठ पर्व के शुभागमन से हो जाता है। कहाँ तक कहें, छठ पर्व हमें परस्पर एकता, एकरसता, एकरूपता और एकात्मकता का पाठ पढाते हैं। और यही हमारी संस्कृति की आधारशिला है।
संक्षेपतः छठ पर्व जहाँ एक ओर भारतीय संस्कृति की कड़ी को मजबूती प्रदान करती है वहीँ दूसरी ओर सौहार्द्रता, सहिष्णुता, एक-सूत्रता और राष्ट्रीयता के साथ मानवता का सुखद संदेश देते हुए हमें और अधिक सभ्य और संस्कृतिवान बनाने के लिए सन्मार्ग भी दिखाती है। अतः आएं इस वर्ष के छठ पर्व को भी हम भारतीय संस्कृति के प्रतीक-पर्व के रूप में हर्षोल्लास पूर्वक मनाएँ।
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