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भारतमाता ग्रामवासिनी -- सुमित्रानंदन पंत
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तीस कोटी संतान नग्न तन / अर्द्ध-क्षुभित, शोषित निरस्त्र जन मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन / नतमस्तक तरुतल निवासिनी, भारतमाता ग्रामवासिनी स्वर्ण शस्य पर पद-तल-लुंठित / धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित क्रन्दन कम्पित अधर मौन स्मित / राहु ग्रसित शरदिंदु हासिनी, भारतमाता ग्रामवासिनी | |
चिंतित भृकुटी क्षितिज तिमिरान्कित / नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित आनन श्री छाया शशि उपमित / ज्ञानमूढ़ गीता-प्रकाशिनी, भारतमाता ग्रामवासिनी सफ़ल आज उसका तप संयम / पिला अहिंसा स्तन्य सुधोपम हरती जन-मन भय, भव तन भ्रम / जग जननी जीवन विकासिनी, भारतमाता ग्रामवासिनी |
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भारतमाता भारतमाता !
चिर-निर्गुण के गुण गाएँ सब,
मै तो तेरा ही रँग-राता !!
तू कंचन की खान मान-धन,
तेरा दूध सपूतों का प्रण,
और-और होंगे उदरम्मरी,
मानवता से तेरा नाता !
भारतमाता भारतमाता !
नाम अनेक, एक मौलिक स्वर,
जाए कितने धर्म धुरन्धर !
जग जीवन के तम पर ताने -
प्राण-वितान सर्व-सुख-दाता !
भारतमाता भारतमाता !
समय समर पर अमर अवतरे,
पीत पात पर हरे ज्यों झरे !
धीर-धुरीण उदार विचारक
एक तत्त्व के सब व्याख्याता
भारतमाता भारतमाता !
धरे थके बिदके आक्रमक
तेरा शील निशित, संक्रामक
संस्कृतियोमं के सहज समन्वय-
का हर एक हुआ उदगाता
भारतमाता भारतमाता !
शत सहस्त्र वर्षों का जकड़ा
काट पाश दासता का कड़ा
प्राण दिए तेरे बेटों ने,
कौन तौड़ प्रण पीठ दिखाता
भारतमाता भारतमाता !
अब तो है स्वतंत्र तू माता
जन गण्तंत्र सुयश फहराता
हुआ स्वराज्य, सुराज शेष है-
तेरा देश विचित्र विधाता !
भारतमाता भारतमाता !
तेरे भूले - भटके लड़के
चुकते आपस में लड़-लड़ के;
'नव निर्माण, अभ्युदय क्या हो?'
अब अनेकता ही अनेकता,
कहां गई एकता ? क्या पता !
मिट्टी में मिल रही प्रतिष्ठा
कोई मां का वेश बचाता
भारतमाता भारतमाता !
-निराला निकेतन पत्रिका 'बेला' से साभार, संपादक - जानकी वल्लभ शास्त्री, अंक -1 वर्ष:1989 , मुजफ्फरपुर- 842001
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जया झा
शत्-शत् है नमन तुझे, / तन-मन है अर्पण तुझे।
भारतमाता!
खुद को ज्ञानी कहने से डरती हूँ,
पर फिर भी सोचने की कोशिश करती हूँ,
जब देखा होगा तूने सभ्यता का पहला उजियाला,
पहनी होगी पहली बार, महिमा-गीतों की माला।
कभी जन्मे होंगे कंस-रावण करने को संहार तेरा,
उतरे होंगे राम-कृष्ण भी करने को उद्धार तेरा।
वशिष्ठ, सांदीपनी देते होंगे / माता-सा ही मान तुझे,
करते होंगे तेरी वंदना, / "तूने ही दिया है ज्ञान मुझे।"
बढ़े होंगे फिर आर्य-पुत्र / संस्कृति के पुनीत पथ पर।
होती होगी तू आनंदित / संतानों की प्रगति लखकर।
क्योंकि तू ही वो होगी जिसने / प्राण से प्रिय बच्चों को अपने
तड़प-तड़प कर, बिलख-बिलख कर, / प्रकृति के कष्टों से लड़कर,
किसी-किसी तरह से जीकर, / मरते हुए देखा होगा।
जना होगा तूने जनक को, / स्वर्ण-युग भोगा होगा।
लिच्छवी गणतंत्र देखकर / अशोक-राज देखा होगा।
आए होंगे शक-कुषाण, / फिर ग्रीक-हूण आए होंगे।
थामकर तलवार हाथ में / तेरे बेटों ने देश-गीत गाए होंगे।
सबको समाती गई होगी तू, / सबको अपनाती गई होगी तू।
'वसुधैव कुटुम्बकम' का प्यारा / गीत गाती गई होगी तू।
बुद्ध-जीन ने भी उसी वक़्त / प्रेम-पाठ गाया होगा।
त्रिरत्न और अष्टांग का / मार्ग भी बताया होगा।
आया होगा बाबर भी फिर, / अकबर ने सिर झुकाया होगा।
हाकिंस के तुझपर क़दम पड़े, / भविष्य सोच दिल तो तेरा रोया होगा।
औरंगजेब ने क्रूरता से / तेरा दिल दुखाया होगा,
लड़ते देख बच्चों को अपने, / जी तो भर ही आया होगा।
बंगाल बना होगा कहीं, / कहीं मैसूर बनाया होगा,
तेरे ही बच्चों ने तेरे अंग-अंग को / बाँट-बाँट कर नाम अलग बताया होगा।
दरारें पड़ गई होंगी / होगी तू अपनों की मारी।
बीच में घुसी होंगी बेड़ियाँ / होगी असहाय तू उनसे हारी।
रोती होगी क़िस्मत पर तू, / "गया कहाँ अब मान मेरा?"
चिल्लाती होगी बच्चों को, / "बहुत हुआ अब जाग ज़रा।"
टकराकर पत्थर से आवाज़ें / तुझ तक ही वापस आती होंगी,
रोकर बच्चों की दुर्दशा पर कोई / शोक-गीत तू गाती होगी।
ढूँढ़ती होंगी तेरी आँखें,
किसी आर्य को, किसी गुप्त को, / जगाना चाहती होगी तू
भारतीयों के हृदय सुप्त को।
जन्मा होगा कोई तिलक फिर / उतरा होगा कोई गाँधी,
झेली होगी भगत सिंह ने / अपने ऊपर तेरी आंधी।
उपजा होगा उत्साह नया / रंग वही लाया होगा,
गुम हुई स्वाधीनता को / तूने फिर पाया होगा।
अब तक के इतिहास में तूने / मानव की मानवता देखी होगी,
दानवता भी भोगी होगी / देवत्व की गोद में तू लेटी होगी।
आर्यपुत्रों का पतन देखा होगा तूने,
मानव को दानव में बदलते देखा होगा,
डरकर इन परिवर्तनों से संभवतः तेरा कोई
पुत्र तेरी गोद में आकर भी लेटा होगा।
ख़ैर! अंत मे एक दिन तूने / मंज़िल एक पाई होगी,
होकर प्रफुल्लित एक बार फिर / तू प्रेम-गीत गाई होगी।
पाकर स्वीधीनता तूने / सपने नए सँजोए होंगे,
सपनों को पूरा करने को / आशा-बीज बोए होंगे।
भारतमाता!
किन्तु सच-सच बतलाना मुझको
क्या स्वप्न-लोक वह चूर हो गया? / आशाओं का रूप वो तेरा
क्या काल्पनिक एक हूर हो गया? / शायद सच!
झटका लगा था ना तुझको / जब अंग तेरा एक भंग हुआ था?
रोई थी न तू बहुत ही / जब मिट्टी का लाल रंग हुआ था?
रोती है न आज भी बहुत / सुनकर तू खेल उनके?
धिक्कारती है न ख़ुद को ही तू / देख कपूतों के मेल अपने?
'इंडिया, नथिंग बट रबिश' जब सुनती है तू
टीस तेरे दिल में उठती है न?
जब अखबार होते हैं काले, काले कारनामों से
तब शर्म से नज़रें तेरी झुकती हैं न?
जब मुकुट पर तेरे चलती है गोलियाँ
तो नसें दिमाग़ की फटती हैं न?
लाता है सागर जब कुसंसकृति का ज़हर
तो पहचान तेरी मिटती है न?
भारतमाता!
दे-दे बस अपना आशीर्वाद। / दे-दे अपनी कृपा का प्रसाद।
शक्ति दे तू इतनी मुझको, / ढूँढ़ पाऊँ मैं चन्द्रगुप्त,
सिकंदर को हराने को उठा सकूँ मैं / उन हृदयों को जो पड़े हैं सुप्त।
या फिर ख़ुद ही बन जाऊँ मैं / विवेकानंद या बुद्ध महान्।
जयचंद का भूत भगाकर / बन जाऊँ खुद ही चौहान।
हो एक बार फिर विश्व में / तेरे ही ज्ञान की विजय।
ताकि हम फिर पुकार पाएँ / "भारतमाता! तेरी हो जय!"
http://jayajha-poetry.blogspot.com/
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ऋषभदेव शर्मा
दिशा-दिशा में गूँज रहा है, भारत माता का जयगान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
यहाँ सृष्टि के आदि काल में, समता का सूरज चमका,
करुणा की किरणों से खिलकर, धरती का मुखड़ा दमका!
सुनो! मनुजता को हमने ही, आत्म त्याग सिखलाया है,
लालच और लोभ को तजकर, पाठ पढ़ाया संयम का!!
जो जग के कण-कण में रहता, सब प्राणी उसकी संतान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
रहें कहीं हम लेकिन शीतल, मंद सुगंधें खींच रहीं
यह धरती अपनी बाहों में, परम प्रेम से भींच रही!
सारे धर्मों, सभी जातियों, सब रंगों, सब नस्लों को,
ब्रह्मपुत्र, कावेरी, गंगा, कृष्णा, झेलम सींच रहीं!!
ऊँच नीच का भेद नहीं कुछ, सद्गुण का होता सम्मान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
हमने सदा न्याय के हक़ में, ही आवाज़ उठाई है,
अपनी जान हथेली पर ले, अपनी बात निभाई है!
पुरजा-पुरजा कट मरने की, सदा रखी तैयारी भी,
वंचित-पीड़ित-दीन-हीन की, अस्मत सदा बचाई है!
जन-गण के कल्याण हेतु हम, सत्पथ पर होते बलिदान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
जिसके भी मन में स्वतंत्रता, अपनी जोत जगाती है,
जो भी चिड़िया कहीं सींखचों, से सिर को टकराती है!
वहाँ-वहाँ भारत रहता है, वहाँ-वहाँ भारत माता,
जहाँ कहीं भी संगीनों पर, कोई निर्भय छाती है!
आज़ादी के परवानों का, सदा सुना हमने आह्वान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
सब स्वतंत्र हैं, सब समान हैं, सब में भाईचारा है,
सब वसुधा अपना कुटुंब है, विश्व-नीड़ यह प्यारा है!
पंछी भरें उड़ान प्रेम से, दिग-दिगंत नभ को नापें,
कहीं शिकारी बचे न कोई, यह संकल्प हमारा है!
युद्ध और हिंसा मिट जाएँ, ऐसा चले शांति अभियान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
जल में, थल में और गगन में मूर्तिमान भारतमाता,
अधिकारों में, कर्तव्यों में, संविधान भारतमाता !
हिंसासुर के उन्मूलन में, सावधान भारतमाता,
'विजयी-विश्व तिरंगा प्यारा', प्रगतिमान भारतमाता!!
मनुष्यता की जय-यात्रा में, नित्य विजय, नूतन उत्थान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
दिशा-दिशा में गूँज रहा है, भारत माता का जयगान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
Through: http://www.anubhuti-hindi.org
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विवेकरंजन श्रीवास्तवा
तेरे विजय घोष से माँ!
गूँजता था विश्व सारा
आज क्यों असहाय है माँ!
क्यों शिथिल तेरी भुजाएँ
वीर सारे सो गए क्या?
सोये से उनको जगा दूँ
माँ चाहूँ तुझे वो ही बना दूँ
तेरे मस्तक की शान थे जो
सत्यवादी हरिश्चंद्र सरीखे
आज उपेक्षित से पड़े हैं
अपने हाथों से उठाकर
थोड़ा-सा मैं प्यार दे दूँ
और ज़रा सम्मान दे दूँ
चाहूँ तुझे वो ही बना दूँ
सारे जहाँ से तू निराली
तू मेरी सुंदर है माता
सुंदर से सुंदरतम बना दूँ
तेरी चरण रज को हे माता
विश्व मस्तक पर सजा दूँ
चाहूँ तुझे वो ही बना दूँ
तेरे आँचल की छाँव में माँ!
राम रहीम नानक खेलते थे
अब कहाँ वो छुप गए हैं
आवाज़ दे उनको बुला लूँ
सारी धरा के फूल हे माता
तेरे श्री चरणों में चढ़ा दूँ
माँ चाहूँ तुझे वो ही बना दूँ
vivekranjan.vinamra@gmail.com
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महेश कुमार वर्मा, पटना
भारतमाता के हम वीर सपूत
नहीं झुकेंगे, नहीं हारेंगे
दुश्मन चाहे लाख आए
अपने कर्तव्य को नहीं भूलेंगे
अपना धर्म नहीं छोड़ेंगे
अन्याय को नहीं स्वीकारेंगे
भारतमाता के हम वीर सपूत
नहीं झुकेंगे, नहीं हारेंगे
आगे बढ़ते रहे हैं
आगे ही बढ़ते रहेंगे
अन्याय व भ्रष्टाचार को
इस देश से निकाल फेकेंगे
सच्चाई व ईमानदारिता के समाज हम बनाएँगे
भारतमाता के हम वीर सपूत
नहीं झुकेंगे, नहीं हारेंगे
vermamahesh7@gmail.com
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मृदुला जैन
हे भारतमाता।
जन्म स्थान: मेरठ उ.प्र. , शिक्षा- एम.ए. अंग्रेज़ी, हिंदी में।
रुचि- अध्ययन, लेखन, संगीत, चित्रकला। , कृतियाँ - घरेलू पत्रिकाओं में स्थायी स्तंभ।
ashok_jain_78@yahoo.com
हे भारतमाता।
अजर, अमर, अटल देश हो, हे भाग्यविधाता
खिले हर कोख में एक दूर दृष्टिदाता
प्रेम, माधुर्य, भाईचारे बनी रहे ये अविरल गाथा
हे भारत माता हे भारत माता।
बनी पड़ी मिसाल है, अखंड कथा निहाल है।
धरा पर बिखरा तेज है, ये संस्कृति की सेज है।
नदी की धार सार है, यहां भूमि आधार है।
हर नजर में स्वप्न है, कर्म यहां धर्म है।
हर बात में दर्शन है, हर साथ में समर्पण है।
हर ओर छाया उजाला है, हर पंथ यहां निराला है।
आशाओं के विस्तार में व्यक्ति की पहचान है।
इस देश की बात में हर अर्थ बस महान है।
जन मन गण, भारत भाग्य विधाता
हे भारत माता, हे भारत माता।
एक राह का सफर, चल रहे कई डगर।
एक चाह का नगर, खोज रहे सभी मगर।
एक धर्म का चौराहा, हर किसी के लिए दोराहा।
एक जीवन का सत्य, न मिले तो लगे सूर्य अस्त।
एक सच का रहे भान, देश के साथ मिलें है प्राण।
एक भूमिका रहे हमेशा, छोड़ जाएं कुछ अनोखा।
दो इस बात का वरदान, रहे हमें देशभक्ति का भान।
हे भारत माता। हे भारत माता। हे भारत माता।
Bhavya Producer, Star News
A-37, Sector-60, NOIDA
bhavyas@starnews.co.in
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