साधारणतः हमलोगों मे एक हीन भावना ग्रसित है कि हम गरीब हैं, और यही गरीबी विरासत में हम अपने बच्चों को दे जाते हैं, बच्चे भी अपने बच्चों को और यह सिलसिला क्रमबद्ध चलता जा रहा है, क्यों न हम आज से हम अपनी गरीबी को मात देकर एक नई जिन्दगी शुरू करें। इस बीमारी को जड़ से समाप्त करने का यही एक मात्र तरीका है जिसे हमें अपनाना ही होगा। एक कदम हम आगे बढ़कर अपनी संतानों को थोड़ा ही सही अर्थ/शिक्षा से उन्हें समृद्ध करें, उनकी मानसिकता को कमजोर करने के बजाये उन्हें सबल प्रदान करें। लोग सोचते हैं कि हारा हुआ इंसान क्या कर पायेगा। परन्तु हमारी यह धारणा ही गलत बन चुकी है। हमें हार में से ही जीत की संभावनाओं को तलाशना होगा। कुछ लोग कहते है कि "जिन्दा रहेंगे तो फिर मिलेंगे" इस बात को इस प्रकार भी कहा जा सकता है " मिलते रहेंगे तो जिन्दा रहेंगे" । मैं जानता हूँ कि आपके पास मेरी बातों को उत्तर जरूर होगा। यदि है तो जरूर लिखें। -शम्भु चौधरी
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