शनिवार, 1 दिसंबर 2007
प्रेम
प्रेम तो बस्ती में बचा था,
पाँच-दस रूपये में नीलाम हो रहा था,
लोगों की लगी थी लम्बी कतारें,
घर के बच्चे सो गये थे ,
थके-हारे।
इस प्यार के इंतजार में ,
कुछ हमारे - कुछ तुम्हारे।
1 टिप्पणी:
जयप्रकाश मानस
19 दिसंबर 2007 को 8:17 pm बजे
कृपया इससे जुड़ना चाहेंगे । सादर
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