शनिवार, 1 दिसंबर 2007

भरोसा

खून की बोतल लिये, खड़ा एक मरीज,

मांग रहा था भीख।

दया करो! मांई-बाप!

आपके हाथों का स्वाद, कुछ अनोखा है,

न कोई कत्ल, न कोई धोखा है।

दिवालों पर लिखे नारों में,

इतना तो भरोसा है।

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