रविवार, 12 अगस्त 2018

‘मास्टरस्ट्रोक’: पंतजलि के विज्ञापनों का सच?


केलकाता- 12 अगस्त 2018
यदि बाबा के विज्ञापन महज एक विज्ञापन होते तो काई बात नहीं पर किसी ऐसे पत्रकार को हटाने में इस विज्ञापन हाथ होना, इस बात का स्पष्ट संकेत है कि यह सभी विज्ञापन जो 2014 के बाद प्रकाश में आयें हैं । इन विज्ञापनों के धन का अज्ञात स्त्रोत कोई ओर है जो इन विज्ञापनों के माध्यमों से लोकतंत्र को गुलाम बनाने की योजना पर कार्य कर रहा है ।
यह बात सच है कि जो बाबा कल तक कालेधन के खिलाफ अन्नाहजारे के विकल्प में अपनी एक अलग मुहिम छेड़ रखी थी, जो बाबा आंदोलन स्थल से कूदकर भाग खड़ा होता हो, जो औरत के भेष  में अपने गेहुया वस्त्र को त्यागकर जान बचा कर सभास्थल से भाग खड़ा होता है । जिसके उत्पादनों के विज्ञापन कभी भी इतनी बड़ी संख्या में नहीं आये । अचानक से मोदी की सरकार आते ही रामदेव बाबा के विज्ञापनों की एक प्रकार तमाम प्रिंट मीडिया से लेकर इल्केट्रोनिक मीडिया में बाढ़ सा आ जाना किसी बात का संकेत तो देता ही है, पर यह नहीं पता था कि इन विज्ञापनों का स्रोत सीधे देश के प्रधानमंत्री मोदी से जुड़ा हुआ है।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी और उनके झूठ को उजागर करते हुए एबीपी न्यूज़ से दो वरिष्ठ पत्रकारों ने के हटाने के पीछे पंतजलि के विज्ञापन का क्या रोल हो सकता है? यह सोचने की बात हो सकती है।
‘द वायर’  के द्वारा  पूछे गये सवालों के जवाब में पतंजलि के प्रवक्ता एस.के. तिजारावाला ने एबीपी न्यूज चैनल से विज्ञापन हटाने की पुष्टि करते हुए स्वीकार किया कि पंतजलि के विज्ञापन हटाये गये हैं।  दरअसल में इसके पीछे पुण्य प्रसुन बाजपेयी के एक कार्यक्रम ‘मास्टरस्ट्रोक’ की चोट से मोदी सरकार इतनी बैचेन हो गई कि उनके कालेधन के इस विज्ञापन का स्त्रोत अंदर से बोल ही पड़ा ।
पिछले चार सालों से रामदेव बाबा के व्यवसाय के विज्ञापनों की बाढ़ के आंकड़े जो सच बताने के लिये काफी है।  बीएआरसी इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक पतंजलि आयुर्वेद ने टेलीविज़न चैनलों में 1.14 मिलियन विज्ञापन दिये, 161 चैनलों में 7,221 घंटों के लिए टीवी चैनलों पर पतंजलि विज्ञापन प्रदर्शित किए गए थे। यह प्रति दिन औसतन 19 घंटे 43 मिनट के विज्ञापनों का भूगतान पंतजलि कर रही है ।  इसके साथ ही प्रिंट मीडिया के विज्ञापनों में पतंजलि के विज्ञापनों की बाढ़ के धन का स्त्रोत क्या है?  चार साल पहले जो कंपनी 2013-14 में महज 850 करोड़ की थी रातों-रात ऐसा क्या ऐसा क्या गुल बाबा ने खिला दिया कि देखते ही देखते 2016-17 में 11526 करोड़ो की कम्पनी बंन गई । दरअसल बाबा आरएसएस का एक मुखौटा है जो स्वदेशी अभियान के बहाने बाबा ने देश का गुमराह कर रहें हैं एवं भाजपा के कालेधन को असली धन बनाकर विज्ञापन का रोजगार कर रही है । जरा आप भी सोचियेगा किस विदेशी कम्पनी ने  च्यवनप्रास, शहद, घी और आटा का व्यवसाय भारत में किया है? जरा दिमाग पर जोर देकर साचियेगा । स्वदेशी के नाम पर देश की भावना से खिलवाड़ की यह प्रणालि आरएसएस का एक हिस्सा मात्र है। व्यवसाय करना अपराध नहीं पर व्यवसाय की आड़ में देश के लोकतंत्र को पंगु बना देने की योजना अपराध है। एक समय ईस्ट इंडिया कम्पनी ने जो किया वही बाबा के विज्ञापनों के माध्यम से मोदीजी करने जा रहें हैं । यदि बाबा के विज्ञापन महज एक विज्ञापन होते तो काई बात नहीं पर किसी ऐसे पत्रकार को हटाने में इस विज्ञापन हाथ होना, इस बात का स्पष्ट संकेत है कि यह सभी विज्ञापन जो 2014 के बाद प्रकाश में आयें हैं । इन विज्ञापनों के धन का अज्ञात स्त्रोत कोई ओर है जो इन विज्ञापनों के माध्यमों से लोकतंत्र को गुलाम बनाने की योजना पर कार्य कर रहा है । दरअसल बाबा का यह विज्ञापन का खेल कुछ ओर ही ज्ञात होता है जो मीडिया को धमकाने के कार्य में मोदीजी प्रयोग कर रहें हैं बाबा तो बस एक मोहरा है।
 नोटः यह लेखक के अपने विचार हैं। इसे लेख को प्रकाशित और पुनः प्रकाशित करने के लिये सभी स्वतंत्र है। । लेखक विधिज्ञाता व स्वतंत्र पत्रकार हैं।  - शंभु चौधरी

एनआरसी: भाजपा अध्यक्ष अमित शाह संसद और सुप्रीम कोर्ट से भी बड़े हैं ?


कोलकाता- 12 अगस्त 2018
यदि इन सभी बयानों को परखा जाए तो ममता बनर्जी के साथ-साथ, देश की सर्वोच्य अदालत (सुप्रीम कोर्ट), देश के गृहमंत्री, राज्य के मुख्यमंत्री, असम के राज्यपाल वे सभी देशद्रोही है जो इन 40 लाख धुसपैठियों को सूची में शामिल करने पूरा अवसर देने की वकालत कर रहें। परन्तु अमित शाह का बयान है कि ये सभी घुसपैठियें हैं । तो फिर इन सभी घुसपैठियों को भाजपा अध्यक्ष सूट-एट-साइट आदेश क्यों नहीं दे देते?  क्या जरूरत है संसद की?  क्या जरूरत है सुप्रीम कोर्ट की?
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए एनआरसी के अध्यक्ष प्रतीक हजेला को, प्रेस में उनके एक बयान को लेकर नाराजगी जताते हुए उनसे पूछा कि उनका काम है रजिस्टर तैयार करना है ना कि प्रेस में एनसीआर के मुद्दों पर बयानबाज़ी । सुप्रीम कोर्ट ने हजेला और रजिस्टार जरनल को जेल भेजने की चेतावनी देते हुए कहा कि वे कोर्ट के आदेश के मुताबिक काम करें। परन्तु भाजपा के अध्यक्ष इन सबसे बड़े हैं । इनके बयानों को सुप्रीम कोर्ट न तो अभी तक संज्ञान में लिया ना ही कोई टिप्पणी ही की । शेर की तरह खुलेआम सुप्रीम कोर्ट को आँख दिखा कर 40 लाख लोगों को धुसपेठिया बना दिया । जबकि एनसीआर की प्रक्रिया अभी जारी है। 
पिछले माह 30 जुलाई को एनआरसी की दूसरी सूची जारी की गई। इस सूची में 2 करोड़ 90 लाख लोगों के नाम शामिल किए गए हैं। सूची में 40 लाख लोगों के नाम प्रकाशित नहीं किए गए हैं। इस सूची के प्रकाश में आते ही बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस सूची पर आपत्ति व्यक्त की जो अमित शाह से लेकर भाजपा के देशप्रेमी छुटभयै तक ममता बनर्जी पर इस प्रकार हमला बोल दिये मानो किसी देशद्रोही से बात कर रहें हैं । जबकि देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने संसद को भरोसा दिया कि यह अंतिम सूची नहीं है। यह मसौदा है। इसलिए जिनका नाम छूट गया है, उन्हें घबराने की कोई जरूरत नहीं है। वे दोबारा आवेदन कर अपनी बात रख सकते हैं। फिलहाल किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाएगी। वहीं असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल जो खुद भाजपा में जुड़ने से पूर्व असम गण परिषद के सदस्य थे। ने राज्यवासियों से अपील की है कि वह किसी भी प्रकार से आशंकित ना हों । जिस किसी भी भारतीय नागरिक का नाम इसमें शामिल नहीं हुआ है उसका नाम अवश्य शामिल किया जाएगा। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी इस जारी एनआरसी की सूची को लेकर अपनी टिप्पणी में कहा कि ना तो हम इस सूची को इंकार कर रहें ना ही स्वीकार । सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि एनआरसी के अंतिम ड्राफ्ट के रिलीज के आधार पर अथाॅरिटी किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकती और जिन लोगों के नाम छूट गए है, उन्हें पूरा मौका मिलने के बाद ही कोई एक्शन लिया जाएगा।
यदि इन सभी बयानों को परखा जाए तो ममता बनर्जी के साथ-साथ, देश की सर्वोच्य अदालत (सुप्रीम कोर्ट), देश के गृहमंत्री, राज्य के मुख्यमंत्री, असम के राज्यपाल वे सभी देशद्रोही है जो इन 40 लाख धुसपैठियों को सूची में शामिल करने पूरा अवसर देने की वकालत कर रहें। परन्तु अमित शाह का बयान है कि ये सभी घुसपैठियें हैं । तो फिर इन सभी घुसपैठियों को भाजपा अध्यक्ष सूट-एट-साइट आदेश क्यों नहीं दे देते?  क्या जरूरत है संसद की?  क्या जरूरत है सुप्रीम कोर्ट की?  राज्यों के मुख्यमंत्रियों की क्या जरूरत है?
इस देश में अभी दो ही व्यक्ति है एक नरेन्द्र मोदी जो भारत के प्रधानमंत्री हैं दूसरा शेयर बाज़ार का सटोरिया अमित शाह को आज भाजपा का अध्यक्ष कम भारत का तानाशाह अधिक बनकर ना सिर्फ पूरी मीडिया तंत्र को पंतजलि विज्ञापनों के माध्यम लोकतंत्र के चौथेस्तंभ का नपुसंक बना दिया है।  साथ ही साथ चुनाव आयोग, भारतीय रिजर्व बैंक,  सुप्रीम कोर्ट, उच्चतम अदालतों को पंगु बनाने का क्रम जारी है। यह भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और भाजपा जैसे संगठन का दुर्भाग्य ही होगा कि हम छद्म राष्ट्रवाद के चक्कर में देश को दो तानाशाह के गिरफ़्त में कहिं न बंध जाएं ? 
 नोटः यह लेखक के अपने विचार हैं। इसे लेख को प्रकाशित और पुनः प्रकाशित करने के लिये सभी स्वतंत्र है। । लेखक विधिज्ञाता व स्वतंत्र पत्रकार है। - शंभु चौधरी, अधिवक्ता

बुधवार, 8 अगस्त 2018

एनआरसी: तब भारतीय नागरिक कौन ?


कोलकाता- 7 अगस्त 2018
पिछले दिनों असम के गुवाहाटी शहर में विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के संगठनों ने मिलकर सरकार के इस व्यवहार पर और नाम काटे जाने को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है। एक अनुमान के अनुसार लगभग 25 लाख हिन्दू हिन्दी व बांग्ला भाषी समाज के नाम एनआरसी की सूची से ग़ायब बतायें जा रहें हैं जिसे भाजपा के अध्यक्ष श्री अमित शाह बांग्लादेशी घुसपैठिये बताते नहीं थक रहे ।
असम में विदेशी नागरिकों के प्रश्न पर छात्र आंदोलन (1979-1985)  हुए । छात्र आंदोलन का एक गुट अगप बनकर सत्ता में आ गई। दूसरा गुट अल्फा के नाम  पर पाकिस्तानियों के सहयोग से भारत में आतंक का साम्राज्य फैला दिया । एक लंबा भय और आतंक का सृजन पूरे असम में फैला दिया गया । अगप के तात्कालिक गृह मंत्री भृगु फूकन ने अल्फा के साम्राज्य के लिये खुलकर तात्कालिक मुख्यमंत्री प्रफ्फुला कुमार महंत पर आरोप लगाये। अगप की सरकार गई । कांग्रेस की सरकार आ गई । आज वही प्रफ्फुला कुमार महंत भाजपा की सरकार में शामिल है। जिसके कार्यकाल में असम में सैकड़ों हिन्दी भाषी जनता को मौत के घाट सुला दिया गया था। हजारों हिन्दी भाषी व बँगला भाषियों को असम छोड़कर पलायन करना पड़ा था ।
एनआरसीः यानि कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का मूल उद्देश्य बंग्लादेश से आये बंग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान करनी व उसे भारतीय नागरिकता के मतदाता सूची से अलग करना है। बार-बार इस बात का उल्लेख हर जगह हो रहा है कि भारतीयों को घबड़ाने की या भयभीत होने की जरूरत नहीं । परन्तु जिस प्रकार भाजपा के नेताओं के बयान आ रहें हैं इससे पूरा देश  एक बार भयभीत तो हो ही चुका है कि क्या जिस तरह से असम में विदेशियों के नाम पर मूल भारतीय जिसमें  बड़ी संख्या में बिहार, उत्तरप्रदेश के भौजपुरी समाज, बंगाल के हिन्दू बंगाली समाज, पंजाब के पंजाबी या राजस्थान के मूल निवासी जो कई पुश्तों से असम में रह रहे हैं उनके नाम को तमाम दस्तावेज प्रस्तुत किये जाने के वाबजूद एनआरसी के दस्तावेज़ में शामिल नहीं किया गया और मजे कि बात है कि चंद दलाल मीडिया ने इन्हें विदेशी घुसपैठिये तक करार दे दिया ।
पिछले दिनों असम के गुवाहाटी शहर में विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के संगठनों ने मिलकर सरकार के इस व्यवहार पर और नाम काटे जाने को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है। एक अनुमान के अनुसार लगभग 25 लाख हिन्दू हिन्दी व बांग्ला भाषी समाज के नाम,  सोची समझी साजिश के तहत एनआरसी की सूची से  ग़ायब बतायें जा रहें हैं जिसे भाजपा के अध्यक्ष श्री अमित शाह बांग्लादेशी घुसपैठिये बताते नहीं थक रहे ।  उनमें बड़ी संख्या में हिन्दू भारतीय की हैं, जबकि इस एनआरसी के बहाने अब तक 10 लाख से अधिक बंग्लादेशी मुसलमानों को भारतीय बना दिया गया है। सवाल उठता है तो फिर असली भारतीय कौन? जो भाजपा के अध्यक्ष अफवाह फैला रहे वो या फिर जिनके नाम एक साजिश के तहत काटे और जोड़े  जा रहें वो?
एक आंकड़े को यदि सही माना जाए तो असम के जिन-जिन इलाकों में 50 प्रतिशत की संख्या में मुसलमानों की आबादी हो चुकी है वहां की आबादी का महज 10 प्रतिशत नाम ही चिन्हीत किये गये अर्थात 45 प्रतिशत मुसलमानों को भारतीय मान लिया गया व इलाके हैं। हैलाकांदी, साउथ सालमारा, धुबड़ी व करीमगंज । ऐसे ही सैकड़ों गांव है जहां मुस्लिमों को खुले रूप में एनआरसी में दर्ज कर लिया गया जबकि हिन्दू भारतीयों के नाम सूची में नहीं शामिल किये गये। उदाहरण के लिये शोणितपुर जिले की ही बात कर लें इस क्षेत्र में लगभग 20 से 45 प्रतिशत प्रवासी भारतीय पुश्तों से अपना जीवन बसर कर रहें हैं  यहां की लगभग आधी आबादी का नाम ही एनआरसी से ग़ायब कर दिया गया। भाजपा एक प्रकार से भारतीय संवेदना के नाम पर देश के विभिन्न राज्यों में रमे बसे लोगों के बीच असुरक्षा की भावना का सृजन करने में सफल हो चुकी है। जिसे भले आज हम घुसपैठिये के नाम पर समर्थन दे लें, दरअसल जमीनी हकिकत कुछ ओर ही बयान कर रही है।  इसका परिणाम अंततः संपूर्ण भारतीयों को भोगना पड़ सकता है । शायद आप जिस राज्य में हैं आने वाले समय में आप भी एक दिन विदेशी बना दिये जायेगें। - शंभु चौधरी