रविवार, 25 फ़रवरी 2018

जादूगोड़ा की जादू की गुड़िया

आओ एक स्वर में जादूगोड़ा के बच्चों की आव़ाज बने।

1. जादूगोड़ा की जादू की गुड़िया

  एक नन्ही सी जादूगोड़ा की जादू की गुड़िया,
  न कुछ बोलती है न समझती है,
  बस टकटकी लगाये दुनिया को निहारती
  घिसटा कर चलती गुड़िया
  इस आस में, कोई आये पास।

  डाक्टरों की जुबां नहीं,
  इलाज का कोई निदान नहीं
  सरकारी जुबान खामोश हैं
  संविधान मौन है
  कवि का हृदय सूनसान है

  समझें कुछ?
  यूरेनियम (Yellowcake) की चाह ने
  हमारी मानवी सभ्यता को
  झकझोर कर रख दिया जादूगोड़ा में

  रोजाना बहती है हवाओं में
  ‘यूरेनियम कचरा’
  पीने को मजबूर है इंसान
  ‘यूरेनियम कचरा’
  खाने को मजबूर है इंसान
  ‘यूरेनियम कचरा’
  जीने को मजबूर है इंसान
   ‘यूरेनियम कचरा’

  जहरीला बना दिया जीवन को
  कैंसर और सांस की बीमारियां आम हैं।
  विकलांग बच्चों की खेप
  क्रमवार जन्म लेती जा रही है
  फिर भी हमारा द्रवित मन
  सरकारी इनाम का मुहंताज है।
  मानवी सभ्यता के इस नये दौर की

  जीती जागती यह कहानी
  भोपाल गैसकांड से भी अधिक खौफनाक है
  पर सभी अपराधी वहां आजाद है-
  सभी आजाद है.. सभी आजाद है।
    - शम्भु चौधरी, कोलकाता-700106

   2. ‘जादूगोड़ा’

  झारखंड राज्य का
  एक गांव
  ‘जादूगोड़ा’
  पीला केक (यूरेनियम) बनाने का कारखाना-
  जबसे इस क्षेत्र में स्थापित हुआ
  संपूर्ण मानव फसल विकलांग हो चुकी है।
  विज्ञान चुपचाप बस अंधा बन सब देखता है,
  वैज्ञानिक सरकारी तनख्वाह पर आश्रित है,
  डाक्टारें की ज़बान काट दी गई है-
  पीले केक के लालच ने हमें
  इस कदर जानवर बना दिया कि
  हम मानवता के सभी नियमों को
  रख दिये हैं ताक पे
  बचा है सिर्फ विकास.. विकास...
  और विकास...
  ऐसा विकास जो हमें गूंगा,
  लंगड़ा और बीमार बनाता है।
  कोई गूंगा,
  कोई लगड़ा जीवन जीने को मजबूर
  यह कुदरत की देन नहीं
  हमारी पीली केक की भूख ने
  इसे ऐसा बना दिया है।
  मासूम बच्चों की उँगलियां,
  उफफफफ...फफ
  ‘गायब’
  बच्चों का आधा शरीर अविकसित
  उफफफफ...फफ
  ‘गायब’
  भ्रूण में ही बच्चों की मौत
  उफफफफ...फफ
  ‘सरकारी हत्या’
  रहम करो जालिमों..
  रहम करो जालिमों..
  उफफफफ...फफ
  हमें ऐसा विकास नहीं चाहिये
  आओ एक स्वर में
  जादूगोड़ा के बच्चों की आव़ाज बने।
  - शम्भु चौधरी, कोलकाता-700106