गुरुवार, 30 जून 2016

दिल्ली में दिल्ली पुलिस का जंगल राज

लेखक: शम्भु चौधरी

दिल्ली पुलिस की वेवसाइट पर अपराध के जो आंकड़े दिये गये उसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भाजपा के राज में दिल्ली पुलिस का जंगलराज किस चरम सीमा तक पंहुच गया है। 2015 में डकैती कि 75 घटना हुई और 2016 में अब तक 21 घटना पुलिस थाने में दर्ज हो चुकी है। इसी प्रकार हत्या के मामले में 570 और जनवरी 2016 से अब तक 219, रोबरी में 2199 व 2016 में 2556, रेप 2199/ 2016 में अब तक 999, चोरी 56385/ 2016 में अब तक 6247, इसी प्रकार छिनताई 9896/ 2016 में अब तक 4625 कुल अन्य सभी प्रकार के अपराधों की संख्या सुन कर आप सदमें में आ जाएंगे वह आंकड़ा 191377 व 2016 में अब तक 2016 में अब तक 90818 यह सभी आंकंड़े दिल्ली पुलिस की वेवसाइट पर उपलब्ध है।

जब से दिल्ली में भाजपा की केन्द्र में सरकार हुई है दिल्ली पुलिस का अब एक ही काम रह गया है कि केजरीवाल को ऐन-केन प्रकारेण परेशान किया जाए, उनके साथियों पर झूठे मुकद्दमे लगाये जाये और तो और दिल्ली पुलिस को इतनी आजादी दे दी गई कि वह कानून व्यवस्था के नाम पर सरेआम गुंडागर्दी भी करे तो कोई उसे रोकने-टोकने वाला भी नहीं।
भारत के गृहमंत्रालय के अंर्तगर्त दिल्ली पुलिस का सीधा खूनी खेल चल रहा है। दिल्ली कि आम जनता लाचार और निःसहाय होती जा रही है। दिल्ली में दिल्ली पुलिस पर सीधा नियंत्रण भारत सरकार का है। जिसके मुखिया गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह जी है। परन्तु पता नहीं बिहार में जंगलराज का हल्ला करनेवाले भाजपा के साथीगण के नाक के नीचे सरेआम रेप, हत्या , लूटपाट, दिनताई, डकैती चोरी की घटना आम बन गई है। भापजा के किसी भी नेता को दिखाई नहीं दे रहीं।
पिछले दिनों दिल्ली में दिल को दहला देने वाली कई वारदात सामने आई। तमाम समाचार पत्रों में दिल को दहला देने वाली कई वारदातें छाई रही पर ना जाने इन गृहमंत्रालय को क्या सुंघ गया कि दिल्ली पुलिस पर कोई कार्यवाही न करने के, उल्टे उसे दिल्ली की जनता को लूटने का लाइसेंस प्रदान कर दिया। मजे की बात यह कि दिल्ली की एंटी क्रप्सन ब्योरो को भी पंगु बना दिया गया ताकी कोई कार्यवाही उसकी मदद से भी ना की जा सके। दिल्ली में मानो दिल्ली पुलिस को सिर्फ एक ही काम दे दिया गया है कि पुरी दिल्ली पुलिस केवल केजरीवाल व 'आप’ की सरकार के विधायकों के के पीछे लगी रहे। जनता मरे तो मरे। कानून व्यवस्था के नाम पर पूरी दिल्ली में एक प्रकार से जंगलराज कायम हो चुका है। दिल्ली के उपराज्पाल नजीब जंग साहेब , केन्द्र सरकार का गृहुमंत्रालय सब के सब दिल्ली पुलिल की काली करतुतों को चुपचाप मौन सहमती दिये हुए है कि भले ही दिल्ली की महिलाओं के साथ रेप हो, हत्या हो, डकैती हो, केन्द्र की भाजपा सरकार चुप रहेगी।
दिल्ली पुलिस की वेवसाइट पर अपराध के जो आंकड़े दिये गये उसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भाजपा के राज में दिल्ली पुलिस का जंगलराज किस चरम सीमा तक पंहुच गया है। 2015 में डकैती कि 75 घटना हुई और 2016 में अब तक 21 घटना पुलिस थाने में दर्ज हो चुकी है। इसी प्रकार हत्या के मामले में 570 और जनवरी 2016 से अब तक 219, रोबरी में 2199 व 2016 में 2556, रेप 2199/ 2016 में अब तक 999, चोरी 56385/ 2016 में अब तक 6247, इसी प्रकार छिनताई 9896/ 2016 में अब तक 4625 कुल अन्य सभी प्रकार के अपराधों की संख्या सुन कर आप सदमें में आ जाएंगे वह आंकड़ा 191377 व 2016 में अब तक 2016 में अब तक 90818 यह सभी आंकंड़े दिल्ली पुलिस की वेवसाइट पर उपलब्ध है।

रविवार, 26 जून 2016

'आप’ की जीत पचा नहीं पा रही मीडिया?

लेखक: शम्भु चौधरी

कोलकाताः 26 जून 2016 पिछले साल दिल्ली विधानसभा के चुनाव प्रचार परिणाम ईपीएम मेशीन से ज्यंू-ज्यूं बहार आने लगे, कई दलाल मीडिया हाउस की जवान लड़खराने लगी और ईपीएम मेशीन से निकल के आंकड़े बोलने लगे आप-67’ और ‘भाजपा-3’ कांग्रेस-शुन्य। इसके पहले भी पिछले चुनाव में जब कांग्रेस की केन्द्र में सरकार थी तब भी आप को 28 सीटें मिली थी ‘आप’ को । जिसे लाचारीवश कांग्रेस के सहयोग से ही सरकार बनानी पड़ी जो महज चंद दिनों में ही कांग्रेस पार्टी के व्यवहारों के चलते गिर गई। तबसे मीडिया का एक वर्ग केजरीवाल के पीछे कुत्ते की तरह पड़ गई साथ ही साथ कुछ दलाल किस्म के साहित्यकार व पत्रकार, जो किसी न किसी राजनैतिक दलों के टूकड़ों पर पलते या उनकी विचारधारा के पोषक बने फिरते हैं भी नहीं चाहते कि देश में कोई ऐसी राजनैतिक पार्टी का उदय हो जो उनके पुश्तैनी धन्धों को बंद करा दे।
दिल्ली के गत दो चुनावों में एक बार केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी तो दूसरी बार भारी बहुमत से लोकसभा में विजयी भापजा केन्द्र की सरकार रही। दोनों तकतों को मुंहतोड़ जबाब देकर जिस प्रकार आम आदमी पार्टी ने अपना विजयी पताका दिल्ली में लहराया वह सबके गले का फांस बनता जा रहा है। दिल्ली में भाजपा की केन्द्र सरकार एक प्रकार से पूरी दिल्ली के प्रशासन को, पुलिस, एसीबी, उपराज्यपाल को अपने नियंत्रण में ले रखा है साथ ही केजरीवाल के सभी विधायकों व उनके विभाग के कर्मचारियों को डराया जा रहा है। सीबीआई की रेड कराई जा रही है। ‘आप’ के विधायकों व मंत्री के ऊपर अपने चम्मचों से एफआईआर कराई जा रही है। इसका विरोध करने पर दलाल मीडिया का वही वर्ग इसे नौटंकी करार देकर प्रचारित करने में लग जातें हैं।
दिल्ली पुलिस की खूनी खेल जारी है। केन्द्र सरकार ने इसे बेलगाम कर दिया है । पिछले दिनों दिल्ली MCD के एक ईमानदार आफिसर मो.खान को दिल्ली पुलिस, भाजपा की केन्द्र सरकार व उपराज्यपाल की नाक के नीचे सरे आम भून दिया गया। एक नावालिग लड़की को बिना उनके परिवार के सहमति के दिल्ली पुलिस ने जला डाला। कानून के नाम पर दिल्ली में कानून को नंगा करने का शर्मसार खेल भाजपा की सह पर बदसूरत जारी है। दिल्ली में रोजना लूट, हत्या, महिलाओं से छेड़छाड़ आम बात हो गई हैं मानों बिहार का जंगलराज दिल्ली में आ गया है। जो भाजपा बिहार में जंगलराज का हल्ला मचा रही है वही भाजपा के नाक के नीचे दिल्ली पुलिस की सह से दिल्ली में जंगलराज कायम है वह किसी मीडिया को क्यों नहीं दिखाई देता?
जनहित में लिये गये सभी फैसलों की फाइलों को रोका जा रहा है। उपराज्यपाल उन फाइलों पर हस्तक्षर करने से इंकार कर रहें हैं। किसी भी निर्णय को लागू कराना एक प्रकार से दिल्ली में पहाड़ सा बनता जा रहा है। यह सब कानून और संविधान की आड़ में नाटक रचा जा रहा है ताकी आम आदमी की सरकार के सभी अच्छे कार्यों को न सिर्फ रोका जाए। इनके विधायकों को किसी न किसी अपराधिक मामलों में फंसा कर जेल भेज दिया जाए ऐसा प्रयास लगातार जारी है। मजे की बात है कि इन सब बातों को गलत तरीके से प्रस्तुत कर देश की जनता को गुमराह करने के लिये मीडिया को सक्रिय भी कर दिया गया है। ताकी दिल्ली में आम आदमी सरकार के कार्यों का प्रभाव पंजाव व गोवा के आगामी चुनाव पर न पड़ जाए।

इस सब हालातों से लोहा लेते हुए भी आम आदमी पार्टी के सभी विधायक व कार्यकत्र्ता दिल्ली की जनता के भलाई में कई फैसले लेते जा रहें है। जबकी भाजपा व कांग्रेस दोनों ही पार्टी नहीं चाहती कि आप’ की सरकार कोई भी जनहित का फैसल ले। पंजाब का चुनाव सामने है। भाजपा की हार निश्चित मानी जा रही है। मोदी सरकार व आर.एस.एस नहीं चाहती है कि वहां [पंजाब में] किसी हालात में ‘आप’ की सरकार सत्ता में आये। इसके लिये भापजा, कांग्रेस से भी हाथ मिलाने को तैयार दिखाई दे रही है। देश में एक नई राजनीति की शुरूआत हुई है। जिसमें देश को लुटनेवालों या सांप्रदायिक राजनीति करने वालों दलों को इससे खतरा पैदा होता जा रहा है।

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

फतवा क्यों? ‘‘भारतमाता की जय पर’’

लेखक: शम्भु चौधरी

भले ही उनका तर्क ‘‘भारतमाता की जय’’ पर कुछ भी रहे। यह फतवा सीधे तौर पर भारत की अखण्डता पर एक सांप्रदायिक हमला है। यह फतवा उस समय आया जब संघ प्रमुख ने लगभग अपनी बात को वापस ले ली थी। देश को सोचना होगा कि इस फतवे के अंदर छुपा संदेश आखिर में क्या कहता है?

कोलकाताः ( 1 अप्रैल,2016) आज धर्मनिरपेक्ष राजनेताओं ने अपने राजनीतिक स्वार्थ के चलते देश की यह हालात बना दी कि भारत में, भारत का ही एक वर्ग भारत में रह कर भारत को गाली दे रहा है कोई भारत मां डायन कह रहा है तो कोई कुछ है। मजे की बात यह है कि इसे बोलने वाले सभी एक विशेष समुदाय के हैं।

आज तो हद कि उस सीमा को भी इन लोगों ने पार कर दी दारुम-उलूम देवबंद के द्वारा एक फ़तवा जारी कर कहा गया है कि भारत माता की जय कहना मूर्ति पूजा के बराबर है। ‘‘इस्लाम में किसी भी तरीके से मूर्ति पूजा नहीं की जा सकती। अतः भारत माता की जय बोली जाए या वंदना की जाए तो इस्लाम में ये मना है, नाजायज है।’’

इसके पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख श्री मोहन भागवतजीने देशभर में आलोचना के शिकार हो जाने के कारण अपने सूर बदलते हुए ‘‘भारतमाता की जय’’ पर दो बार सफाई दी कहा कि ‘‘हमें ऐसा कार्य करना है कि, पूरी दुनियाँ भारत माता की जय का नारा लगायेगी’’ जब इससे भी बात नहीं बनी तो कहा कि ‘‘ हम ऐसा भारत बनाएँगे जहां लोग खुद-ब-खुद भारत माता की जय हो.... हम नहीं चाहते कि किसी पर इसके लिये दबाव डाला जाए, इसे थोपा ना जाए।’’

देश की आज़ादी के पश्चात भारत की नींव को संविधान निर्माताओं ने भारत के मांस के टुकड़े को चन्द गिद्धों के खाने के लिए छोड़ दिया, ताकि सत्ता स्वार्थ बना रहें। दुर्भाग्य की बात है कि एक तरफ हमें ऐसे फतवे पढ़ने-सुनने को मिल रहें हैं। यह फतवा उस कौम की मानसिकता को दर्शाता है कि वे मौका मिलते ही भारत की बर्बादी का नया इतिहास लिख डालेगें।

भले ही उनका तर्क ‘‘भारतमाता की जय’’ पर कुछ भी रहे। यह फतवा सीधे तौर पर भारत की अखण्डता पर एक सांप्रदायिक हमला है। यह फतवा उस समय आया जब संघ प्रमुख ने लगभग अपनी बात को वापस ले ली थी। देश को सोचना होगा कि इस फतवे के अंदर छुपा संदेश आखिर में क्या कहता है? - भारतमाता की जय!


शनिवार, 12 मार्च 2016

छद्म धर्मनिरपेक्ष वनाम संघीय राष्ट्रवाद?


लेखक: शम्भु चौधरी

एक तरफ गाय का मांस खानेवालों की जमात इस बात पर बहस कर रही थी गाय के मांस खाना ही धर्मनिरपेक्षता का उनका पहला सिद्धांत है तो दूसरी तरफ राष्ट्रवाद के नाम पर राजनीति कर देश में नये संघवाद के प्रयोग में लगी है कि संघ की विचारधारा जिसमें संघ का राष्ट्रवाद भी शामिल है उसके नाम पर सर्मथकों को साथ लेकर अन्य सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं की आवाज को देशद्रोही बना दिया जाए।

कोलकाताः ( 28 फरवरी ,2016) संसद व राज्यसभा में जोरदार बहस छड़ी हुई थी एक तरफ धर्मनिपेक्षता का चोला पहने वे लोग थे जो देश में पिछले 60 सालों से धर्मनिपेक्षता की आड़ में राज करते आ रहे थे तो दूसरी तरफ देश पिछले 60 सालों से देश में सत्ता का सपना देखने वाली आज की सत्ताधारी दल संघ विचारधारा द्वारा संचालित भाजपा की सरकार। बहस का मुद्दा था वोट की आड़ में चलाये जा रहे छद्म धर्मनिरपेक्षता का कैसे वचाव किया जाए तो दूसरी तरफ सत्तारूढ़ भाजपा की सरकार चाहती थी कि धर्मनिरपेक्षता की आड़ में संघीय ( आर.एस.एस ) राष्ट्रवाद को कैसे हवा दी जा सके।
एक तरफ गाय का मांस खानेवालों की जमात इस बात पर बहस कर रही थी गाय के मांस खाना ही धर्मनिरपेक्षता का उनका पहला सिद्धांत है तो दूसरी तरफ राष्ट्रवाद के नाम पर राजनीति कर देश में नये संघवाद के प्रयोग में लगी है कि संघ की विचारधारा जिसमें संघ का राष्ट्रवाद भी शामिल है उसके नाम पर सर्मथकों को साथ लेकर अन्य सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं की आवाज को देशद्रोही बना दिया जाए।
जो भाजपा महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में हिन्दूवादी विचारधारा को जम कर गाली देने व एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने के बाद सत्ता के लिये उसी थूक को चाटने लगी। जम्मू-कश्मीर में जिसे चुनाव के वक्त देशद्रोही बोलती नहीं थक रही थी, दूम हिलाने लगी । यह तो है "संघ का संघिय राष्ट्रवाद जो उनका साथ दे वह तो देशभक्त बाकी सारे के सारे देशद्रोही। " कहने का अभिप्राय है कि भाजपा देश के मिजाज को कभी धर्म के नाम पर, कभी देशभक्ती के नाम पर नोचाने में लगी है तो दूसरी तरफ धर्मनिरपेक्षता की आड़ में कांग्रेस सहित वे तमाम ताकतें देश में अल्पसंख्यकों को राजनैतिक ताकत के प्रयोग से प्रत्यक्ष रूप से स्नेहः स्नेहः देश के लिये खतरा बनता जा रहा है। हमें किसे चुनना है अब इस बात की बहस है।
पिछले दिनों जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर में देश विरोधी नारे लगाये गये, भारत की बर्बादी के नारे लगे कांग्रेस का धर्मनिरपेक्ष इसे अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर सही ठहराने में लगी है। कश्मीर में देश विरोधी नारे लगाये जातें है, पाकिस्तानी झंडे दिखाये जाते हैं भाजपा की आंख में चश्मा लग जाता है। भाजपा का राष्ट्रवाद तब बुट लादने चला जाता हैं
परन्तु जेएनयूएसयू अध्यक्ष छात्र कन्हैया कुमार को इसलिये भाजपा देशद्रोही बना देने में पलक भी नहीं झपकती। विभिन्न प्रकार के प्रजाती जमात में देश अब यह सोचने को विवश हो चुका कि हम अब किसे राष्ट्रवादी समझें और किसे धर्मनिरपेक्षवादी ? क्या जो धर्मनिरपेक्षवादी हैं व राष्ट्रवादी नहीं? या जो राष्ट्रवादी हैं वह धर्मनिरपेक्षवादी नहीं? यदि देश को इस प्रकार बांट दिया जायेगा कि राष्ट्रवादी का सिर्फ वही मायने रह जायेगा जो संघ की विचारधारा से सहमत होगा या धर्मनिरपेक्षवादी उसे ही समक्षा जायेगा जो संधवाद का विरोधी होगा तो इसे देश का दुर्भाग्य ही हम मानेगें । जयहिन्द!