भाजपा को कौन बचाएगा? - शम्भु चौधरी
भाजपा अध्यक्ष श्री नितिन गडगरी जी दिसम्बर २००९ में भारतीय जनता पार्टी के नौंवें राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए। पिछले दिनों जबसे श्री गडगरी जी का नाम जमीन हड़पने और उनकी कंपनियों पर आर्थिक मामले में जालसाज़ी का आरोप लगे हैं जिसकी सरकारी एजेंसियाँ जांच कर रही है। इसी बीच गडगरी जी को लगा कि उनका दूसरी बार भाजपा का अघ्यक्ष बनने का सपना अधूरा ही रह जाएगा। जिसके लिए उसने सालभर से ही कड़ी मशक्कत कर भाजपा के संविधान तक को भी पलटकर रख दिया। इसलिए उनको कारण-अकारण ही अचानक से दाऊद का नाम याद आ गया। इनका स्पष्ट उद्देश्य था कि भाजपा के नेताओं को जो उनका विरोध पार्टी में कर रहे हैं या संघ के उन कार्यकर्ताओं को जो उनका समर्थन नहीं कर रहें उनको अपने दाऊद से रिश्ते की बात याद दिला सके। इसलिए उन्होंने संघ को यह बताने की जरूरी समझा कि ‘‘स्वामी विवेकानंद और अंडरवर्ल्ड माफिया दाऊद इब्राहिम की आईक्यू यानी बौद्धिक क्षमता समान है।’’ ताकी संघ के नेताओं को यह जानकारी रहे कि उन्होंने जो धन पिछले कुछ सालों में खर्च किया है उसका पाई-पाई वे वसुलकर रहेगें। परिणाम स्वरूप रातों-रात एक मसीहा बन कर श्री गडगरी जी जांचकर लिया और उसने सुबह उठते ही यह बता दिया कि सबकुछ ठीक-ठाक है कहीं कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। भाजपा अध्यक्ष के इस दौगले चरित्र ने देश को सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि आखिर में इस भ्रष्टाचार की लड़ाई में हम साथ लें तो किसे लें? सबके सब एक ही हमाम में नंगे होकर नहा रहे हैं।
श्री नितिन गडगरी जी को तो भाजपा बचा ले जाएगी पर भाजपा को कौन बचाएगा? यह यक्ष प्रश्न जनता के सामने आ खड़ा हुआ है कि जिस प्रकार भाजपा ने पिछलें कुछ सालों में विपक्ष की भूमिका निभाई है इससे जनता को निराशा ही हाथ लगी है। इसका सबसे बड़ा कारण श्री गडगरी जी को माना जा रहा है। श्री मान ने, न सिर्फ संध को धोखा दिया है। भाजपा के नेताओं को भी धमकाने के लिए आपने सभी विकल्प खुले कर दिए है।