शम्भु चौधरी
कोलकाता, 21 मार्च 2012: आगामी 30 मार्च 2012 को राज्यसभा के लिए पष्चिम बंगाल से पांच सदस्यों के लिए होने वाले चुनाव में बंगाल की तीनों प्रमुख पार्टियों ने अपने-अपने उम्मीदवारों घोषणा कर दी है। जिसमें राज्य की प्रमुख पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने वर्तमान में केंद्रीय रेलमंत्री मुकुल राय, बांग्ला दैनिक ‘संवाद प्रतिदिन’ के वरिष्ठ पत्रकार कुणाल घोष, उर्दू दैनिक ‘अकबर-ए-मसरिक’ के मोहम्मद नदीमूल हक और हिन्दी दैनिक संमार्ग के निदेशक विवेक गुप्ता, कांग्रेस पार्टी की तरफ से कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता अब्दुल मन्नान और माकपा की तरफ से सीटू के महासचिव तपन सेन ने नामांकन पत्र दाखिल किया है।
तृणमूल नेता व राज्य के उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी ने बताया कि मुकुल राय, कुणाल घोष और मोहम्मद नदीम उल हक पार्टी के पहले तीन उम्मीदवार होंगे जबकि गुप्ता चौथे उम्मीदवार के रूप में स्थान लेगें।
विधानसभा के सीटों के हिसाब से तृणमूल कांग्रेस तीन उम्मीदवारों को राज्यसभा भेज सकती है जबकि चौथे उम्मीदवार के लिए उसे अन्य दलों के सहयोग की जरूरत पड़ेगी। विधानसभा में तृणमूल के 185 सदस्य जिसमें से एक सदस्य श्री अजित भुइयां का निधन हो चुका है। वाममोर्चा के 61 सदस्य और कांग्रेस के कुल 42 सदस्य हैं। इन आंकड़ों से यह साफ चिन्हीत होता है एक सीट के लिए सौदेबाजी निश्चित तौर पर किसी एक उम्मीदवार को करनी ही होगी। चुनाव में एक उम्मीदवार को जितने के लिए 49 मतों की जरूरत होगी। कांग्रेस पार्टी ने भी राज्य में ममता के साथ बिगड़ते रिश्ते को हवा देते हुए अपने 42 सदस्यों के बल पर अब्दुल मन्नान का नामांकन भरवा दिया है। निश्चित तौर पर तृणमूल पार्टी का समर्थन इस दल को नहीं मिलना तय है। इस स्थिति में कांग्रेस पार्टी को माकपा के सहयोगी दलों का समर्थन मिलना तय है। सूत्रों के हवाले से यह भी पता चला कि तृणमूल पार्टी के कुछ विधायक पार्टी लाइन से बहार जाकर भी अपना मतदान कर सकते हैं।
वर्तमान राजनीति परिदृश्य में 5 सीटों में से 3 पर तृणमूल व 1 सीट पर माकपा की जीत तय है। पांचवां उम्मीदवार कौन होगा? जिसमें तृणमूल के चौथे श्रेणी के हिन्दीभासी उम्मीदवार हिन्दी दैनिक संमार्ग के निदेशक विवेक गुप्ता उम्मीद लगाए हुए हैं। राज्य की मुख्यमंत्री व तृणमूल नेत्री ममता बनर्जी कहती है कि उनके चारों प्रत्याशी जीत हासिल करेगें तो सवाल यह उठता है कि श्री विवेक गुप्ता को चौथे श्रेणी में क्यों रखा गया?
संख्या बल के अनुसार इस बार वाममोर्चा का एक ही उम्मीदवार पहुंचेगा। इसके बाद भी बाम दलों के पास 12 अतिरिक्त वोट बचेगें। जबकि कांग्रेस को 7 वोट की जरूरत होगी। ऐसे में गणित के आंकड़े किस करवट लेगा अभी कह पाना संभव नहीं हैं।
राज्य की मुख्यमंत्री व तृणमूल नेत्री ममता बनर्जी हिन्दीभासियों का सम्मान करते हुए एक सीट पर हिन्दी दैनिक संमार्ग के निदेशक विवेक गुप्ता को मनोनीत किया गया है।
ताजा समाचारः
कांग्रेस पार्टी के प्रत्यासी वरिष्ठ नेता अब्दुल मन्नान ने अपना नामांकन वापिस ले लिया है। इस प्रकार शेष सभी पांचो उम्मीदवारों का चयन निर्विरोध हो गया। सभी को बधाई।
सोमवार, 19 मार्च 2012
बंगाल में राज्यसभा का चुनाव
रविवार, 18 मार्च 2012
जमीन खोती जा रही कांग्रेस पार्टी
कोलकाता से शम्भु चौधरी
पिछले माह पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव व इनके परिणामों पर विभिन्न विद्वानों के विश्लेषण से इस बात के संकेत प्राप्त होते हैं कि कांग्रेस पार्टी में अब कार्यकर्ताओं की जगह नेताओं ने ले ली है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में जिस प्रकार चुनाव प्रचार किया गया। साम दाम दंड भेद का न सिर्फ प्रयोग किया गया कांग्रेस पार्टी ने चुनाव आते-आते वे सभी पत्ते खोल दिये जो इनके धर्मनिरपेक्षता पर भी एक बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। जातिगत राजनीति से लेकर धर्म आधारित राजनीति ने देश को यह भी सोचने को मजबूर कर दिया कि अब हर चुनाव राजनैतिज्ञ तुष्टिकरण से ही प्रारम्भ होकर धार्मिक तुष्टिकरण पर ही समाप्त होगा। धीरे-धीरे प्रायः सभी राज्यों में मुसलमानों का संगठित मतदान एक निर्णायक की भूमिका निभाने में सझम दिखाई देने लगा है। इसके साथ ही पिछले 50-60 सालों से कांग्रेस पार्टी जिसने इन वाटों पर केन्द्र की राजनीति की अब वह अपने खुद के बुने जाल में उलझती जा रही है। महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल कुछ ऐसे राज्यों की सूची में आ चुके हैं जहाँ कांग्रेस के केन्द्रीय या राज्य के चन्द चापलूस-पदलोलुप नेताओं ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को सामने रख संगठन को हमेशा से नुकसान पंहुचाते रहे हैं। महाराष्ट्र में जहाँ शरद पावर ने कांग्रेस से अलग होकर खुद को शक्तिशाली बना लिया तो बंगाल में ममता के कद को नीचा दिखाने व केन्द्र में रहने की मजबूरी ने इस पार्टी की जमीन ही बंगाल से हिला कर रख दी। तमिलनाडु में पिछले 45 सालों से, बिहार और उत्तरप्रदेश में में पिछले दो दशकों से, बंगाल में पिछले 35 सालों कांग्रेस पार्टी सत्ता से बहार हो चुकी है। पंजाब, कर्नाटक, राजस्थान, असम, हरियाणा व देश के कुछ छोटे राज्यों में कांग्रेस अपनी स्थिति को किसी प्रकार बचा पाती है इसका कारण यह नहीं कि वहां इस पार्टी कर जनाधार मजबूत है। इसका कारण है कि अभी वहाँ जनता को कोई अच्छा विकल्प नहीं मिल पाया है। जबकि केरल व त्रिपुरा में माकपा का जनाधार कुछ हद तक कांग्रेस को टक्कर देता रहा है। कांग्रेस पार्टी के जो नेतागण अपने ही राज्यों के मझले नेताओं के पर कुतरते रहे हैं वैसे ही लोग सत्ता को अपनी जागिर बनाये रखने के लिए गांधी परिवार के सामने अपने घुटने टैकने का कार्य करते रहें हैं।
आज जब उत्तरप्रदेश के चुनाव परिणाम ने दो युवाओं की लड़ाई में अखिलेश यादव को जनता ने जो जनमत प्रदान किया वहीं गांधी परिवार की कमाई खाने वाले कांग्रेसियों को करारा झटका भी दिया है। मजे कि बात यह है कि इस पार्टी में इनके खुद के राज्य को मजबूत बनाने की जगह हवा में महल बनाने के लिए नींव बनाई जाती रही है। दिल्ली के गलियारे तक सिमटती कांग्रेस पार्टी आज धीरे-धीरे राज्यों में अपनी जमीन खोती जा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण है कांग्रेस पार्टी जनमत पर विश्वास न कर गांधी परिवार तक सिमटती नजर आती है। इससे देश के अन्दर छोटी-छोटी ताकतें अपना सर उठाने में सफल रही है। देश का राजनैतिज्ञ परिदृश्य भी तेजी से बदलता जा रहा है। इसका विश्लेषन कांग्रेस पार्टी को अंततः करना ही होगा। कि वह किस दिशा में जा रही है? राज्य के नेताओं के पर कुतरने के बजाय यदि कांग्रेस पार्टी उनके कद को एक अनुशासन के अन्दर महत्व प्रदान करे और सत्ता प्राप्त करने की जल्दबाजी न कर अपने संगठन को महत्व दे तो संभवतः यह दल भारतीय राजनीति में अपनी पहचान बचा पाएगी अन्यथा इसका हर्ष दिल्ली तक सिमटता चला जाऐगा।