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बुधवार, 7 नवंबर 2018

लोकतंत्र: भाइयों कुछ तो गड़बड़ है?


कोलकाता- 8 नवंबर 2018
 अभी हाल में ही रिजर्व बैंक का सुरक्षित कोष जो कि  देश की जनता का धन है उसका एक तिहाई हिस्सा सरकार उन लुटेरों  अडानी, अनील अंबनी व नीरव मोदी जैसे देश के महान लुटारों, जिन्होंने  देश लूटने में  उनको मदद की थी  के खातों में डाल देने का दबाव बना रही है ।  एक बात पुनः यहां उल्लेख करना चाहता हूँ पंतलजि का विज्ञापन लोकतंत्र को धराशाही करने में मोदी सरकार को सहयोग कर रहा है यह बात कई बार प्रमाणित हो चुकी है 
दुष्यंत कुमार की एक कविता - दोस्तों, अब मंच पर सुविधा नहीं है, आज कल नेपथ्य में संभावना है। 
आज इस बात को इतिहास में लिखना जरूरी हो गया कि भारत की प्रायः सभी संवैधानिक संस्थाएं जिसमें सुप्रीम कोर्ट से लेकर, चुनाव आयोग, सीबीआई, भारतीय रिजर्व बैंक, सीवीसी, व अन्य तंत्र पूर्ण रूप से मौजूदा हिटलरशाही मोदी सरकार के गिरफ़्त में आ चुकी है । सीबीआई में किस प्रकार राकेश अस्थाना की नियुक्ति से लेकर उनके काले कारनामों को बचाने के लिए जिस प्रकार रातों-रात सभी संवैधानिक व्यवस्थाओं को ताख पर रख कर सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा को उनको उनके पद से हटा दिया गया। ठीक यही घटना कुछ दिनों पूर्व सुप्रीम कोर्ट में हुई जिसमें चार जजों ने मीडिया के सामने आकर अपना दुखड़ा रोया था कि "सबकुछ ठीक नहीं चल रहा "। आदरणीय रजंन गोगोई की मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति से लेकर अन्य जजों की नियुक्तियों पर संध का हस्तक्षेप,  जिस प्रकार अभी से भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल मोदी सरकार को मजबूत करने का राग दौहरने लगे, जिस प्रकार सेना के तीनों मुख्य सेनापति सरकार की सुरक्षा में तैनात दिखे,  आज रिजर्व बैंक की बात सामने आ गई - आरबीआई गवर्नर (पालतू) उर्जित पटेल जिसने नोटबंदी के समय से अबतक मोदी सरकार के कहे-कहे देश को गुमराह किया, आज उसी पर इतना भीतरी दबाब है कि वे खुद इस्तीफा देने की पेशकेश करने वाले हैं। ‘‘ दाल में काला तो जरूर है ’’ मोदी जी की ही भाषा में - ‘‘काली रात को काली करतूत - भाइयों कुछ तो गड़बड़ है? अब रात के अंधेरे में क्या होता है क्या यह भी  बताने की जरूरत है  आपको ! ’’
दुख तो तब होता है जब लोकत्रंत का प्रहरी मीडिया तंत्र जो खुद को लोकतंत्र का चौथा खंभा मानती है  उसका एक वर्ग पेट के रोग से ग्रसित हो चुका है उनके पेट में चांदी के जूतों का जौंक पैदा हो चुका है जो भीतर ही  भीतर शरीर रूपी लोकतंत्र का खून पीने लगा है । कभी हमें धर्म की खुंटी पीलाई जा रही है, कभी हमें राष्ट्रवाद की तो कभी देश की सुरक्षा की दुहाई दी रही है । मानो अचानक से सब कुछ खतरे में पड़ चुका हो । वही व्यक्ति जब देश के साथ गद्दारी करता है और भारतीय जवानों को भारत की सड़कों पर ही जूतों से पीटवाता हो ।  देश द्रोहियों (मोदी जी ने ही कहा था) के साथ सरकार बनाता हो तब इनकी देशभक्ति किस अंतरिक्ष यात्रा पर चली जाती है ? ‘‘भारत माता की जय’’ या  ‘‘गाय का मांस खाने की बात’’ क्यों टाल दी जाती जब इनको सरकार बनानी होती?  राममंदिर इनका चुनावी मुद्दा बनकर क्यों रह गया? यह सोचने की बात है।  पिछले पांच सालों की कुव्यवस्था से आज देश की अर्थव्यवस्था विनाश के कगार पर आ चुकी है । तेल व गैस के दामों से जनता को लूटने के बाद भी, बच्चों की शिक्षा पर 18% प्रतिशत जीएसटी (GST) लगा देने बाद भी, डालर अपनी रफ्तार पकड़ेे हुए है ।  अभी हाल में ही रिजर्व बैंक का सुरक्षित कोष जो कि जनता का धन है का एक तिहाई हिस्सा सरकार उन लुटेरों - अडानी, अनील अंबनी व नीरव मोदी जैसे देश के महान लुटारों, जिन्होंने  देश लूटने में  इनको मदद की  के खातों में डाल देने का दबाव बना रही है । एक नीरव मोदी से देश के किसानों को भला हो सकता था पर नहीं हुआ। एक अनिल अंबानी से देश के सैकड़ों गांवों में शिक्षा व इलाज की व्यवस्था हो सकती थी नहीं हुई, पर मोदी सरकार देश को गंभीर आर्थिक संकंट में डालने के हर उस कदम पर मोहर लगा रही हैं जो देश को बर्वाद करने में तुली हो।  यह किसी आर्थिक खतरों की तरफ संकत दे रहा है कि देश में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा ।
एक बात पुनः यहां उल्लेख करना चाहता हूँ पंतलजि का विज्ञापन लोकतंत्र को धराशाही करने में मोदी सरकार को सहयोग कर रहा है यह बात कई बार प्रमाणित हो चुकी है।  अतः मीडिया तंत्र को कहीं लकवा ना मार जाए इस बात पर बहस जरूरी है कि उन प्रतिष्ठानों में काम लोकतंत्र की  शर्त पर की जाय या नही ?
 - शंभु चौधरी, लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं व विधि विशेषज्ञ भी है।

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