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मंगलवार, 11 मई 2010

आचार्य महाप्रज्ञ का निधन अपूरणीय क्षति


9 मई 2010 ... बीदासर : श्वेताम्बर तेरापंथ के दसवें संत आचार्य महाप्रज्ञ का रविवार को निर्वाण हो गया। महाप्रज्ञ दोपहर करीब 2.50 बजे देवलोकगमन कर गए। वे 89 वर्ष के थे। अणुव्रत आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले महाप्रज्ञ जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय के अध्यक्ष थे। महाप्रज्ञ के निर्वाण से तेरापंथ समाज में शोक की लहर है। महाप्रज्ञ का जन्म 17 जून 1920 में झुंझनुं जिले के छोटे से गांव तमकोर में हुआ। महाप्रज्ञ को अपने परिवार में नथमल के नाम से जाना जाता था। 1931 में मात्र दस वर्ष की आयु में उन्होंने सन्यास ले लिया था। अहिंसा व विश्वशांति के अग्रदूत आचार्य महाप्रज्ञ का स्वर्गवास जैन समाज के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश व दुनिया के लिए एक अपूरणीय क्षति है। धर्म, अध्यात्म, शांति व अमन के प्रचार-प्रसार में उनके योगदान को शब्दों में बयां करना कठिन है। उनके निधन का समाचार मिलने के बाद से ही जैन समुदाय में शोक लहर दौड़ गई। डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम ने चुरू जिले के सरदार शहर पहुंचकर आचार्य महाप्रज्ञ को श्रद्धांजलि दी । पिछले दिनों मेरे मित्र श्री प्रकाश चंडालिया ने उनसे मिलकर एक साक्षात्कार लिया था। जिसे हम यहाँ पाठकों के लिये जारी कर रहें हैं। हम देश की इस अपूरणीय क्षत्ति को पुरा तो नहीं कर सकते, हाँ! श्रद्धांजलि स्वरूप हम उनके विचारों से प्रेरणा ग्रहण कर सकतें हैं।- संपादक



साक्षात्कार आचार्य महाप्रज्ञ से

- प्रकाश चंडालिया -


अपने चिन्तन और विचारों से ऐसे ही करोड़ों लोगों को प्रभावित करने वाले श्री महात्मा यूं तो तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य हैं, लेकिन अपने चिन्तन के माध्यम से उन्होंने यह स्थापित कर दिया है कि वह केवल तेरापंथ संघ के आचार्य ही नहीं, भारत के महान दार्शनिकों में उनका नाम सुमार है। उम्र के आठ दशक पार करने के बाद भी अहिंसा की महान यात्रा लेकर पूरे भारत भ्रमण पर निकले आचार्य श्री ने महाप्रदीय देश के कई प्रान्तों का सफर कर लिया है। राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा जैसे प्रान्तों में उन्होंने अहिंसा यात्रा का परचम लहराया है और अब तक 7.5 हजार किलोमीटर से अधिक की यात्रा संपन्न कर चुके हैं। आचार्य महाप्रज्ञ की इस यात्रा में 100 करोड़ की आबादी वाले इस देश में
एक प्रतिशत ही कहें तो एक करोड़ से ज्यादा लोग इनके संपर्क में आए हैं। आचार्य श्री का प्रभाव अहिंसा यात्रा का कितना है यह इसी से समझा जा सकता है कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आठ बार गुरुदेव का दर्शन करने आ चुके हैं।
उनसे किए गये प्रश्नोत्तर:-
प्रश्न: गुरुवर, आप अहिंसा यात्रा पर निकले हुए हैं और अब तक आपने 7.5 हजार किलोमीटर की यात्रा कर ली है। अहिंसा यात्रा का चिंतन आपके दिमाग में कैसे आया और जो आपकी आंखों में एक सपना था अहिंसा यात्रा का उसे साकार करने में आप कहां तक बढ़ पाए।
उत्तर: भगवान महावीर के 26वें जन्मदिन को भारत सरकार ने अहिंसा वर्ष घोषित किया था। काफी समय बीत गया-कुछ भी नहीं हो रहा था, तब एक चिन्तन आया कि अहिंसा वर्ष की घोषणा सरकारी घोषणा तो है ही किन्तु हमारा भी कर्तव्य है कि कुछ करना चाहिए। एक निमित बना और अहिंसा यात्रा की भावना, कल्पना सामने आई। फिर उस पर चिन्तन किया, उद्देश्य बनाया कि जनता में अहिंसा की चेतना जागृत हो। सुजानगढ़ से सफर शुरू हुआ और पांच वर्ष पूरे हो गए, छठा वर्ष अभी चल रहा है। व्यापक जन संपर्क रहा और हमने केवल बात में ही हिंसा-अहिंसा की बात में ध्यान नहीं दिया वह तो चल ही रहा था, किन्तु अहिंसा के कारणों पर विचार किया, चिन्तन किया, अनुसंधान किया तो सामने जो कारण आये तो मान लिया एक साधन है कि अहिंसा ज्यादा हो।
प्रश्न: देश में बढ़ती हिंसा का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर: जातिवाद और सम्प्रदायवाद हिंसा का कारण बन रहा है। अनैतिकता भी हिंसा का कारण है। आदमी में आवेश इतना बढ़ रहा है कि आज सहन करने की शक्ति कम हो गई है। साथ-साथ में गरीबी तो है ही, किन्तु रोटी का अभाव भी हिंसा का बड़ा कारण बन रहा है। भूखा आदमी हिंसा में बह जाता है। इन सब कारणों को सामने रख कर हमने काम शुरू किया कि हमारा एक लक्ष्य रहे स्वस्थ व्यक्ति, स्वस्थ समाज और स्वस्थ अर्थ व्यवस्था, इन तीनों के समन्वयन के बिना अहिंसा की बात आगे नहीं बढ़ सकती। इन सब के चिंतन के साथ हमने यात्रा शुरू की और संयोग की बात है कि सबसे पहले राजस्थान से गुजरात में हिंसा के वातावरण में ही हमें प्रवेश करना पड़ा।
प्रश्न: आप अंहिसा के विभिन्न प्रयोग करते रहे हैं। क्या यह संभव है कि हम अंहिसा का पूर्ण दौर देख सकेंगे क्या सभी धर्मों के एकीकरण की कल्पना की जा सकती है?
उत्तर: पूर्ण अहिंसा कभी संभव नहीं है। सभी धर्मों के एकीकरण की कल्पना करनी नहीं चाहिए। संभव भी नहीं है। हमें तो इतना ही करना चाहिए कि धार्मिक लोगों में सामंजस्य रहे, समन्वय की भावना रहे और धर्म के नाम पर लड़ाई झगड़ा न हो। इतना हो जाए तब इससे आगे जाना भी नहीं है। संभव भी नहीं है। पूर्ण अहिंसा की कल्पना ही डींग है। क्यों कि मनुष्यों के मस्तिष्क समान नहीं होते हैं। मस्तिष्क की रचनाएं भिन्न चिन्तन-मनन करती है। राष्ट्रीयता भी भिन्न-भिन्न होती है। इतना ही कर सकते हैं कि कोई भी राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर अपना बाजार और व्यावसायिक प्राधित्व स्थापित न करें इतना हो तो कार्य अच्छा है।
प्रश्न: आंतकवाद की मूल जड़ क्या है?
उत्तर: आतंकवाद की मूल वजह राजनीति और वे करततें हैं जो कुछ कारणों से कुछ लोगों के द्वारा होती हैं। आतंकवाद है, भिन्न वाद है, इसके पीछे अनेक कारण हैं-राजनीतिक कारण भी हैं, और कुछ राष्ट्रों पर अपना अधिकार व प्रभुत्व जमाने की भावना भी है। इन कारणों में एक मूल कारण ये लगता है कि भूखे आदमी को
धनी आदमी जहां लगाना चाहें लगा सकते हैं। अतंकवाद में यही हो रहा है।
प्रश्न: धर्म के नाम पर जेहाद क्या आतंकवाद का ही एक हिस्सा है?
उत्तर: आतंकवाद एक जाल है। कोई भी अतंकवादी अपने पुत्र को आतंकवादी नहीं बनाता। जेहाद और आतंकवाद अलग-अलग और एक दूसरे के विपरीत बिन्दु हैं।
प्रश्न: भारत में हिंसा रुकने का नाम ही नहीं लेती। आरोप है कि पड़ोसी देश भारत में आतंकवाद को शह दे रहा है।
उत्तर: पहले ही कहा है कि राजनीति आतंकवाद का मुख्य कारक है।
प्रश्न: विभिन्न धर्मों के अनेक साधु-संत काफी वैभवशाली जीवन यापन करते हैं।
उत्तर: यह एक संवेदनशील विषय है, जिसके बारे में अधूरी बात कहना नहीं चाहता और पूर्ण बात कह नहीं सकता।
प्रश्न: संथारा को गलत संदर्भ में परिभाषित किया जाता है।
उत्तर: यह भ्रांति है। आत्महत्या आवेश में की जाती है जबकि संथारा साधना या समाधिकरण का एक प्रयोग है। अधूरे ज्ञान के कारण लोग संथारा को आत्महत्या परिभाषित कर देते हैं।
प्रश्न: युनेस्को के शान्ति विश्वाविद्यालय के पदाधिकारी एवं संयुक्तराष्ट्र संघ के शान्ति मिशन के लोग आपसे मिलते रहे हैं। इस संबंध में अब तक क्या काम हुआ है?
उत्तर: चर्चाएं होती हैं। हिंसा के दमन के लिए वे लोग सामंजस्य स्थापित करना चाहते हैं, प्रयास जारी है।
प्रश्न: पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के साथ आप पुस्तक लिख रहे हैं। कैसी होगी यह पुस्तक क्या विज्ञान और अध्यात्म में सामंजस्य संभव है?
उत्तर: पूर्व राष्ट्रपति के साथ पुस्तक से संबंधित चर्चाएं होती रही हैं। पुस्तक कैसी होगी इसका आंकलन तो पाठक ही करेंगे। विज्ञान और अध्यात्म का योग समाज व राष्ट्र को बेहतर स्थिति में ला सकता है।
प्रश्न: राष्ट्रकवि दिनकर ने आपकी तुलना स्वामी विवेकानन्द से की है जबकि कुछ लोग आप में गाँधी की छवि देखते हैं।
उत्तर: आचार्य तुलसी ने एक बार कहा था कि महाप्रज्ञ को महाप्रज्ञ ही रहने दो। मैं भी यही सोचता हूँ।
प्रश्न: आप अपने लक्ष्य में कितने सफल हुए हैं?
उत्तर: पहले पहल तो लक्ष्य नहीं जानता था, कितना बढ़ पाया उसको मापना कठिन है। हिमखण्ड का सिरा दिखाई देता है, सम्पूर्ण हिमखण्ड तो सागर में ही समाहित है।
प्रश्न: तेरापंथ का भविष्य.........?
उत्तर: आचार्य तुलसी के शब्दों में शुभ ही शुभ है।